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चीनी सामान के बहिष्कार करने के साथ- साथ भारत के अर्थव्यवस्था को भी ध्यान में रखना जरूरी

मुंबई – गलवान घाटी में चीन और भारत के बीच हुई झड़प पर देश के लोगों का गुस्सा चीन पर फूट फूट कर सामने आ रहा है । अपने वीर जवानों के शहीद होने के बाद देश में चारों तरफ चीन के सामान का बहिष्कार किया जा रहा है, लोग अपने द्वारा खरीदे गए चीनी सामान का बहिष्कार कर रहे हैं, उसे तोड़ रहे हैं, जला रहे हैं, लेकिन ऐसा करना क्या वास्तव में भारत के हित में है ?

भारत – चीन व्यापार के आर्थिक विश्लेषक पंकज जायसवाल के मुताबिक, ‘चीनी सामान के बहिष्कार को हमें दो हिस्सों में बांटना होगा, एक तो जो हमने चीन को पहले ही 100 फ़ीसदी भुगतान कर दिया है, या जो सामान भारत के बाजार में पड़ा है, हम उस सामान को तोड़े, फेंके, जलाएं, या खरीदें इन सब बातों से चीन को इससे कोई फर्क नहीं पड़ने वाला है, क्योंकि चीन को इन सभी सामान का पूरा भुगतान मिल चुका है, इसलिए ऐसा करने का कोई मतलब नहीं है।

वहीं दूसरी ओर ‘हम एक कट ऑफ डेट ले जैसे आज का और आज के बाद का भारत के व्यापारी चीन के साथ सौदा, व्यापार, ठेका और आयात सब बंद कर दे, मतलब चीन से ना आयात, ना भुगतान, ना व्यापार।

जनता को इसके लिए प्रेरित करने से अच्छा इसके लिए सरकार को प्रेरित किया जाए क्योंकि सरकार के एक निर्णय से आयात और आयात के माध्यम से भुगतान दोनों रुक जाएगा।

उन्होंने आगे कहा या तो सरकार चीनी सामान को भारत में बैन कर दे, या फिर इतना आयात शुल्क लगाए जिससे भारतीय बाजार उसके मुकाबले में हो,

उनके मुताबिक “चीनी सामान का इस्तेमाल करने वाले सभी उपभोक्ताओं को भी यह जान लेना जरूरी है, की हर चीनी उत्पाद पर हम जो भी मूल्य चुकाते हैं, उसमें चीनी कंपनियों की लागत के साथ चीनी सरकार का टैक्स भी शामिल होता है, और वह उसी टैक्स का इस्तेमाल सैन्य बल में खर्चा करता है, जो आखिर में भारत के ही खिलाफ होता है”।

उन्होंने भारतीय ग्राहकों को समझाते हुए कहा, जो छोटे दुकानदार, रेहाड़ी, या अन्य लोगों पास जो भी चीनी सामान बचा पड़ा है, उसका बहिष्कार करने का कोई मतलब नहीं है, इससे भारतीय अर्थव्यवस्था का ही नुकसान होगा क्योंकि चीन तो इसका भुगतान पहले ही ले चुका है।

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