“धाडिचा प्रथा: शिवपुरी की अमानवीय परंपरा में महिलाओं का वस्तुकरण”
भारत ने लिंग समानता की दिशा में महत्वपूर्ण प्रगति की है, लेकिन देश के कुछ हिस्सों में महिलाओं के साथ अमानवीय व्यवहार की घटनाएँ आज भी जारी हैं। मध्य प्रदेश के शिवपुरी जिले में प्रचलित धाडिचा प्रथा ऐसी ही एक परंपरा है, जहाँ महिलाएँ किराए पर दी जाती हैं। यह प्रथा न केवल महिलाओं के वस्तुकरण को दर्शाती है, बल्कि समाज में व्याप्त पितृसत्तात्मक सोच (Patriarchal Thinking) को भी उजागर करती है।
शिवपुरी जिले के एक गाँव में प्रचलित धाडिचा प्रथा एक ऐसा ही उदाहरण है, जहाँ महिलाएँ किराए पर दी जाती हैं। यह प्रथा भारतीय समाज में व्याप्त पितृसत्तात्मक सोच और महिलाओं के वस्तुकरण को दर्शाती है।
धाडिचा प्रथा क्या है?
मध्य प्रदेश के शिवपुरी जिले के गाँव में धाडिचा नामक एक प्रथा प्रचलित है, जहाँ परिवार अपनी बेटियों और पत्नियों को किराए पर देते हैं। हर साल एक बाजार लगता है, जहाँ पुरुष अपनी साथी चुनते हैं। इस बाजार में कुंवारी लड़कियों की विशेष मांग होती है और उनका चयन उनकी शारीरिक सुंदरता और कौमार्य (Virginity) के आधार पर होता है।
लड़कियों का मूल्य निर्धारण
धाडिचा प्रथा में लड़कियों की कीमत उनकी उम्र और सुंदरता के आधार पर तय की जाती है। 8 से 15 साल की उम्र की कुंवारी लड़कियों को प्राथमिकता दी जाती है। शादीशुदा महिलाओं की तुलना में कुंवारी लड़कियों की कीमत अधिक होती है। एक लड़की का किराया लगभग 15,000 से 25,000 रुपये तक होता है, लेकिन कभी-कभी यह कीमत 2 लाख रुपये तक भी पहुँच जाती है। इस प्रथा में गैर-कुंवारी लड़कियों की कीमत 10,000 से 15,000 रुपये के बीच होती है।
एक लड़की को दुल्हन बनने के लिए क्या योग्य बनाता है?
धाडिचा प्रथा में लड़कियों की उम्र 6 साल से शुरू होती है। इन लड़कियों को यौन शोषण का सामना करना पड़ता है। कुछ परिवार इन लड़कियों को विशेष दवाएँ देते हैं ताकि उनका शारीरिक विकास तेजी से हो और वे अधिक मूल्य प्राप्त कर सकें। इन लड़कियों का विवाह कुछ समय के लिए किराए पर किया जाता है, जिसके बाद उनका अनुबंध समाप्त होने पर उन्हें वापस कर दिया जाता है या फिर नए ग्राहक को किराए पर दे दिया जाता है।
कानूनी स्थिति और कार्रवाई
भारत में महिलाओं की तस्करी के खिलाफ कई कानून हैं, जैसे कि अनैतिक व्यापार निवारण अधिनियम, बाल श्रम निषेध अधिनियम, और भारतीय दंड संहिता। हालांकि, इन कानूनों के कार्यान्वयन में कई खामियाँ हैं, जिसके कारण तस्करी और दासता जैसी समस्याओं का समाधान नहीं हो पाता। कुछ गैर-सरकारी संगठन इस मुद्दे को उजागर करने का प्रयास कर रहे हैं, लेकिन पुलिस और प्रशासन की उदासीनता के कारण यह प्रथा अब भी जारी है।
निष्कर्ष
धाडिचा प्रथा भारतीय समाज की एक कड़वी सच्चाई है, जो महिलाओं के साथ होने वाले दुर्व्यवहार और वस्तुकरण को दर्शाती है। यह समय की माँग है कि सरकार इस प्रथा के खिलाफ कड़े कानून बनाए और लोगों को इसके अवैध और अमानवीय होने के बारे में जागरूक करे। महिलाओं के सम्मान और समानता के लिए इस तरह की प्रथाओं को समाप्त करना आवश्यक है।
नवीनतम अपडेट और रोमांचक कहानियों के लिए हमें ट्विटर, गूगल न्यूज और इंस्टाग्राम पर फॉलो करें और फेसबुक पर हमें लाइक करें।