इंदौर में ‘डिजिटल अरेस्ट’ ठगी: रिटायर्ड प्रोफेसर से 33 लाख की ठगी, पुलिस ने 26.45 लाख रुपये दिलाए वापस

इंदौर: मध्य प्रदेश के इंदौर में ‘डिजिटल अरेस्ट’ के नाम पर एक सेवानिवृत्त प्रोफेसर को ठगी गिरोह ने अपना शिकार बनाया और उससे 33 लाख रुपये की ठगी कर ली। पुलिस ने इस मामले की जानकारी देते हुए बताया कि ‘डिजिटल अरेस्ट’ साइबर ठगी का नया तरीका है, जिसमें ठग खुद को कानून प्रवर्तन अधिकारी बताकर पीड़ित को ऑडियो या वीडियो कॉल के जरिए धमकाते हैं और उसे पूछताछ के नाम पर डिजिटल रूप से बंधक बना लेते हैं।
कैसे हुई ठगी?
अतिरिक्त पुलिस उपायुक्त राजेश दंडोतिया के अनुसार, ठग गिरोह के एक सदस्य ने इंदौर के एक सेवानिवृत्त प्रोफेसर को वीडियो कॉल किया और खुद को दिल्ली पुलिस की साइबर अपराध शाखा का अधिकारी बताया।
- ठग ने रिटायर्ड प्रोफेसर को यह झूठी जानकारी दी कि उसका आधार कार्ड कई बैंक खातों से जुड़ा पाया गया है, जिनका इस्तेमाल धनशोधन (मनी लॉन्ड्रिंग) के लिए किया जा रहा है।
- वीडियो कॉल के दौरान ठग ने प्रोफेसर को ‘डिजिटल अरेस्ट’ करने की धमकी दी और उसे एक फर्जी पूछताछ प्रक्रिया में उलझा दिया।
- ठग ने प्रोफेसर को लगातार निर्देश दिए और उसे इतना डरा दिया कि उसने अपनी जमा-पूंजी के 33 लाख रुपये अलग-अलग बैंक खातों में ट्रांसफर कर दिए।
पुलिस की कार्रवाई: 26.45 लाख रुपये वापस दिलाए
घटना की जानकारी मिलते ही पुलिस ने त्वरित कार्रवाई की।
- अतिरिक्त पुलिस उपायुक्त ने बताया कि पुलिस ने पीड़ित व्यक्ति की शिकायत पर उसे 26.45 लाख रुपये वापस दिलाए।
- इस रकम से पीड़ित प्रोफेसर ने पुणे में अपना लिवर ट्रांसप्लांट कराया।
- पुलिस ने ठगी में इस्तेमाल किए गए 49 बैंक खातों से लेन-देन पर रोक लगा दी है और शेष रकम वापस दिलाने की कोशिश की जा रही है।
क्या है ‘डिजिटल अरेस्ट’ ठगी?
‘डिजिटल अरेस्ट’ साइबर अपराध का एक नया तरीका है, जिसमें ठग खुद को पुलिस अधिकारी या किसी सरकारी एजेंसी का सदस्य बताकर वीडियो कॉल या ऑडियो कॉल के जरिए पीड़ित को डराते हैं।
- पीड़ित को यह विश्वास दिलाया जाता है कि वह किसी आपराधिक गतिविधि में फंस गया है।
- उसे धमकाया जाता है कि अगर उसने ठगों की बात नहीं मानी, तो उसे कानूनी कार्रवाई का सामना करना पड़ेगा।
- इस डर से पीड़ित बिना सोचे-समझे ठगों के बैंक खातों में पैसे ट्रांसफर कर देता है।
कैसे बचें साइबर ठगी से?
पुलिस ने लोगों को इस तरह की ठगी से बचने के लिए सतर्क रहने की सलाह दी है।
- अगर कोई आपको वीडियो कॉल या ऑडियो कॉल कर खुद को पुलिस अधिकारी बताकर बैंक खातों की जानकारी मांगे, तो सतर्क रहें।
- ऐसे कॉल्स पर भरोसा न करें और तुरंत साइबर क्राइम हेल्पलाइन नंबर 1930 पर शिकायत करें।
- किसी भी अनजान व्यक्ति को ओटीपी, बैंक डिटेल्स या व्यक्तिगत जानकारी साझा न करें।
- अगर आपको कोई धमकी भरा कॉल आए, तो स्थानीय पुलिस स्टेशन में इसकी सूचना दें।
निष्कर्ष
इंदौर में हुई ‘डिजिटल अरेस्ट’ ठगी ने यह साबित कर दिया कि साइबर अपराधी लगातार नए-नए तरीकों से लोगों को ठगने की कोशिश कर रहे हैं। हालाँकि, पुलिस की मुस्तैदी के चलते पीड़ित प्रोफेसर को 26.45 लाख रुपये वापस मिल गए, लेकिन यह घटना सभी के लिए सतर्कता और जागरूकता बढ़ाने का एक संदेश है। अगर आप भी ऐसी किसी स्थिति का सामना करें, तो बिना डरे पुलिस की मदद लें और साइबर ठगी से खुद को बचाएं।
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