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नए इनकम टैक्स बिल के तहत डिजिटल स्पेस में सरकार की दखलंदाजी: क्या यह निजता के अधिकार का उल्लंघन है?

भारत में नया इनकम टैक्स बिल 2025 कर चोरी को रोकने और अघोषित संपत्ति का पता लगाने के लिए सख्त प्रावधान लेकर आया है। इस बिल के तहत आयकर विभाग को सोशल मीडिया अकाउंट्स, बैंक अकाउंट्स, ईमेल्स, ऑनलाइन निवेश खातों और अन्य डिजिटल स्पेस तक पहुंचने का कानूनी अधिकार दिया गया है, यदि उन्हें संदेह हो कि किसी व्यक्ति ने आयकर चोरी की है या उसके पास कोई अघोषित संपत्ति है।

क्या कहता है नया इनकम टैक्स बिल?
नए इनकम टैक्स बिल का धारा 247 (Clause 247) आयकर अधिकारियों को यह अधिकार देती है कि वे किसी भी व्यक्ति के कंप्यूटर सिस्टम, ईमेल, सोशल मीडिया अकाउंट्स, ऑनलाइन निवेश और ट्रेडिंग अकाउंट्स, बैंकिंग अकाउंट्स, क्लाउड स्टोरेज, डिजिटल प्लेटफॉर्म्स और अन्य डिजिटल स्पेस में घुस सकते हैं, यदि उन्हें संदेह हो कि उस व्यक्ति के पास अघोषित आय या संपत्ति है।

यह प्रावधान इनकम टैक्स एक्ट, 1961 की धारा 132 का विस्तार है, जो पहले ही कर अधिकारियों को ताले तोड़कर घर, लॉकर या अन्य जगहों की तलाशी लेने और दस्तावेज जब्त करने का अधिकार देती थी। नया इनकम टैक्स बिल इस अधिकार को डिजिटल स्पेस तक बढ़ा रहा है।

वर्चुअल डिजिटल स्पेस (VDS) की नई परिभाषा
बिल के अनुसार, वर्चुअल डिजिटल स्पेस (Virtual Digital Space – VDS) का दायरा बहुत विस्तृत है, जिसमें निम्नलिखित शामिल हैं:

  1. ईमेल सर्वर
  2. सोशल मीडिया अकाउंट्स (जैसे फेसबुक, इंस्टाग्राम, ट्विटर)
  3. ऑनलाइन निवेश और ट्रेडिंग अकाउंट्स
  4. बैंक खाते और डिजिटल वॉलेट्स
  5. वेबसाइट्स जो संपत्ति की स्वामित्व जानकारी संग्रहीत करती हैं
  6. रिमोट सर्वर और क्लाउड स्टोरेज
  7. डिजिटल एप्लिकेशन प्लेटफॉर्म
  8. कोई अन्य डिजिटल स्पेस जिसका उपयोग वित्तीय गतिविधियों के लिए किया जाता है

इसका मतलब यह है कि अगर कर विभाग को किसी व्यक्ति पर कर चोरी का संदेह होता है, तो वे उसकी डिजिटल संपत्ति और ऑनलाइन गतिविधियों तक पहुंच बना सकते हैं, चाहे वह व्यक्तिगत हो या व्यवसाय से संबंधित।

आधिकारिक अधिकारी कौन हैं?
बिल के तहत, निम्नलिखित अधिकारियों को इन छापों को अंजाम देने का अधिकार दिया गया है:

  1. संयुक्त निदेशक (Joint Director) या अतिरिक्त निदेशक (Additional Director)
  2. संयुक्त आयुक्त (Joint Commissioner) या अतिरिक्त आयुक्त (Additional Commissioner)
  3. सहायक आयुक्त (Assistant Commissioner) या उप आयुक्त (Deputy Commissioner)
  4. आयकर अधिकारी (Income Tax Officer) या कर वसूली अधिकारी (Tax Recovery Officer)

क्या यह निजता के अधिकार का उल्लंघन है?
कानूनी विशेषज्ञों के अनुसार, यह नया प्रावधान संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत प्रदत्त निजता के अधिकार (Right to Privacy) का उल्लंघन कर सकता है।

  • कानूनी विशेषज्ञ सोनम चंदवानी का कहना है कि “इस बिल के तहत सरकार को डिजिटल स्पेस में लोगों की पूरी गतिविधियों की निगरानी करने की अनुमति मिल जाती है, जो कि संभावित रूप से निजता के अधिकार और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उल्लंघन कर सकता है।”
  • विशेषज्ञ वकील सस्वती सौम्या साहू ने कहा, “डिजिटल स्पेस की तलाशी लेना और लोगों के सोशल मीडिया अकाउंट्स तक पहुंच बनाना एक अनुचित और मनमाना कदम हो सकता है, खासकर जब यह वित्तीय आकलन से संबंधित न हो।”
  • एस.आर. पट्नायक, कर मामलों के प्रमुख (Cyril Amarchand Mangaldas) के अनुसार, “ऐसे छापे केवल विशेष परिस्थितियों में होने चाहिए, न कि सामान्य नियम के रूप में। इसके अलावा, जांच के लिए उचित कारण और न्यायिक मंजूरी आवश्यक होनी चाहिए।”

क्या यह संवैधानिक रूप से वैध होगा?
भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने के.एस. पुट्टास्वामी बनाम भारत संघ (2017) मामले में निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार घोषित किया था। इस फैसले में कहा गया था कि राज्य किसी भी व्यक्ति की निजता में दखल तभी दे सकता है, जब वह कानूनी, आवश्यक और आनुपातिक हो।

  • संदीप भल्ला, पार्टनर, ध्रुवा एडवाइजर्स, के अनुसार, “यह नया इनकम टैक्स बिल मौजूदा डेटा सुरक्षा और गोपनीयता कानूनों का उल्लंघन करता है और इसमें निगरानी को लेकर पर्याप्त सुरक्षा उपाय नहीं हैं।”
  • कई कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि यह प्रावधान अदालतों में चुनौती का सामना कर सकता है क्योंकि यह अनुच्छेद 19(1)(a) (अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता) और अनुच्छेद 21 (निजता का अधिकार) का उल्लंघन कर सकता है।

क्या यह कंपनियों पर भी लागू होगा?
इस नए बिल में डिजिटल स्पेस की व्यापक परिभाषा को देखते हुए, कर अधिकारियों को उन कंपनियों की डिजिटल संपत्ति तक भी पहुंचने का अधिकार मिल सकता है, जहां कोई संदिग्ध करदाता कार्यरत है या था।

  • विशेषज्ञों का कहना है कि यह कंपनियों के लिए एक बड़ी चिंता का विषय बन सकता है, क्योंकि यह उनके संवेदनशील डेटा तक सरकार की पहुंच को आसान बना देगा।
  • यदि कोई कर्मचारी कर चोरी के दायरे में आता है, तो उसकी कंपनी के डेटा की भी जांच की जा सकती है, जिससे कॉर्पोरेट डेटा सुरक्षा को खतरा हो सकता है।

निष्कर्ष: क्या यह कानून संतुलित है?

  1. पक्ष में तर्क:
  • सरकार का दावा है कि यह कर चोरी और काले धन को रोकने के लिए आवश्यक है।
  • डिजिटल माध्यमों के बढ़ते उपयोग के कारण, कर अधिकारियों को आधुनिक उपकरणों की आवश्यकता है।

विपक्ष में तर्क:

  1. निजता का उल्लंघन: यह कानून नागरिकों की व्यक्तिगत और वित्तीय स्वतंत्रता को खतरे में डाल सकता है।
  2. मनमानी निगरानी का खतरा: बिना उचित न्यायिक निगरानी के यह कानून सरकारी अधिकारियों को असीमित शक्ति प्रदान करता है।
  3. कानूनी विवाद: यह कानून संवैधानिक चुनौतियों का सामना कर सकता है, खासकर निजता और डेटा सुरक्षा के उल्लंघन के आधार पर।

क्या इस कानून को लागू किया जाना चाहिए?
विशेषज्ञों का मानना है कि अगर यह कानून लागू भी किया जाता है, तो इसके लिए उचित न्यायिक मंजूरी, निगरानी और पारदर्शिता की आवश्यकता होगी। अन्यथा, यह नागरिकों की निजता और डिजिटल स्वतंत्रता का उल्लंघन कर सकता है और लोकतंत्र की मूलभूत अवधारणा को चुनौती दे सकता है।

क्या सरकार को आपकी डिजिटल जानकारी तक पहुंचने का अधिकार होना चाहिए? यह एक बड़ा सवाल है जिस पर पूरे देश में बहस जारी है।

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