मुंबई में फिर भड़का मराठी भाषा विवाद, डी-मार्ट स्टोर में मनसे कार्यकर्ताओं ने कर्मचारी को थप्पड़ जड़ा

देश की आर्थिक राजधानी मुंबई में मराठी भाषा के मुद्दे पर विवाद और मारपीट कोई नई बात नहीं है। इसी कड़ी में एक और घटना मंगलवार (25 मार्च) को सामने आई जब अंधेरी वेस्ट के वर्सोवा इलाके में स्थित डी-मार्ट स्टोर में मराठी न बोलने पर महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) के कार्यकर्ताओं ने वहां के एक कर्मचारी को थप्पड़ जड़ दिया और उसे चेतावनी दी कि आगे से ऐसी हरकत न करें।
स्टोर कर्मचारी ने कहा- “मैं मराठी में नहीं बोलूंगा”
इस पूरी घटना का एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया, जिसमें डी-मार्ट स्टोर का एक कर्मचारी **एक ग्राहक से यह कहते हुए सुना गया,
“मैं मराठी में नहीं बोलूंगा। मैं केवल हिंदी में बात करूंगा। जो करना है कर लो।”
कर्मचारी की इस टिप्पणी से मनसे कार्यकर्ता नाराज हो गए। जब इस घटना की जानकारी मनसे के स्थानीय नेताओं को मिली तो पार्टी कार्यकर्ताओं में गुस्सा भड़क उठा।
मनसे कार्यकर्ताओं ने स्टोर में जाकर कर्मचारी को थप्पड़ मारा
इस घटना के बाद मनसे की वर्सोवा इकाई के अध्यक्ष संदेश देसाई के नेतृत्व में पार्टी कार्यकर्ताओं का एक समूह स्टोर में जा पहुंचा। संदेश देसाई ने स्टोर कर्मचारी को माफी मांगने के लिए कहा, लेकिन कर्मचारी ने माफी मांगने से इनकार कर दिया।
इसके बाद गुस्साए मनसे कार्यकर्ताओं ने कर्मचारी को थप्पड़ मार दिया।
“अब ऐसा नहीं करूंगा” – कर्मचारी ने मांगी माफी
मनसे कार्यकर्ताओं के विरोध और थप्पड़ के बाद आखिरकार डी-मार्ट के हिंदी भाषी कर्मचारी ने अपने व्यवहार के लिए माफी मांग ली। उसने कहा कि वह अब से मराठी भाषी लोगों का अपमान नहीं करेगा।
इसके बाद पुलिस अधिकारियों ने मामले में हस्तक्षेप किया और जानकारी दी कि स्टोर के कर्मचारी ने अपने व्यवहार के लिए माफी मांग ली है, जिससे मामला शांत हो गया।
मुंबई में मराठी भाषा विवाद फिर भड़का
बीते कुछ दिनों से मुंबई में मराठी भाषा को लेकर विवाद एक बार फिर गरमाया हुआ है। एबीपी माझा की रिपोर्ट के अनुसार स्थानीय लोगों का मानना है कि मुंबई में हिंदी, मारवाड़ी, गुजराती और अन्य भाषाएं बोलने वालों की संख्या लगातार बढ़ रही है, जिससे मराठी भाषी लोगों को कई जगह अपमानित महसूस करना पड़ रहा है।
गौरतलब है कि केंद्र सरकार ने मराठी भाषा को शास्त्रीय भाषा का दर्जा दे दिया है, इसके बावजूद मराठी भाषा और पहचान को लेकर संघर्ष जारी है। यही वजह है कि मनसे जैसी पार्टियां मराठी अस्मिता के मुद्दे को जोर-शोर से उठाती रही हैं।
इस ताजा घटना ने फिर यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या भाषा को लेकर इस तरह की जबरदस्ती और हिंसा उचित है? या फिर इसे राजनीतिक एजेंडे के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है? मुंबई की गंगा-जमुनी तहजीब के लिए यह एक गंभीर चुनौती बन सकता है।
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