कांवड़ यात्रा मार्ग पर दुकानों के नाम अनिवार्य करने का आदेश: सियासत में उबाल, ओवैसी और गोगोई की आलोचना

योगी सरकार ने उत्तर प्रदेश में कांवड़ यात्रा के दौरान एक महत्वपूर्ण आदेश जारी किया है, जिसमें कहा गया है कि कांवड़ यात्रा रूट पर सभी दुकानदारों के नाम लिखना अनिवार्य होगा। इस फैसले के बाद सियासी घमासान शुरू हो गया है।
असदुद्दीन ओवैसी का विरोध
एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने इस फैसले पर कड़ी आपत्ति जताई है। ओवैसी ने टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट को साझा करते हुए सोशल मीडिया पर लिखा, “यूपी के कांवर मार्गों पर खौफ, यह भारतीय मुसलमानों के प्रति नफरत की हकीकत है। इस गहरी नफरत का श्रेय राजनीतिक दलों/हिंदुत्व के नेताओं और तथाकथित दिखावटी धर्मनिरपेक्ष पार्टियों को जाता है।”
कांग्रेस सांसद गौरव गोगोई का निशाना
कांग्रेस सांसद गौरव गोगोई ने भी इस आदेश पर सवाल उठाए हैं। उन्होंने कहा, “2024 के लोकसभा चुनाव के बाद भाजपा संकट में है। वो अपनी सांप्रदायिक राजनीति पर उतर आई है लेकिन वे (भाजपा) भूल चुके हैं कि देश की जनता ने सांप्रदायिक राजनीति को विफल किया है।”
भाजपा राज्यसभा सांसद दिनेश शर्मा का समर्थन
उत्तर प्रदेश के पूर्व उपमुख्यमंत्री और भाजपा राज्यसभा सांसद दिनेश शर्मा ने योगी सरकार के इस फैसले का समर्थन किया है। उन्होंने कहा, “निश्चित रूप से यह स्वागत योग्य कदम है और लोगों के बीच आपसी प्रेम और सौहार्द्र बढ़े इस भावना के साथ सरकार ने यह आदेश जारी किया है। इस आदेश में यह नहीं कहा गया है कि किसे कहां से सामान खरीदना है, जो जहां से चाहे वहां से सामान खरीद सकता है।”
शर्मा ने आगे कहा, “दुकान के नीचे लगभग 40-50% लोग अपने मालिक का नाम लिखते हैं। मैं समझता हूं कि जो संविधान की व्यवस्था है उसमें धार्मिक आस्था का सम्मान और संरक्षण का जो भाव दिया है उसके अंतर्गत यह एक बेहतर प्रयत्न है। हिंदू और मुसलमान मिलकर चलें, रामलीला में मुसलमान पानी पिलाते हैं तो लोग पीते हैं, ईद में हिंदू लोग उनका स्वागत करते हैं इसमें कोई आपत्ति नहीं है लेकिन जो व्रत, त्योहार, कांवड़ यात्रा के कुछ नियम हैं उनका उल्लंघन न हो। इस नीयत से यह निर्णय एक स्वागत योग्य कदम है।”
निष्कर्ष
योगी सरकार का यह आदेश एक तरफ जहां सामाजिक सौहार्द्र और धार्मिक आस्था का सम्मान बढ़ाने की कोशिश है, वहीं दूसरी तरफ इसे राजनीतिक दलों और नेताओं द्वारा सांप्रदायिक रंग भी दिया जा रहा है। इस विवाद के बीच, यह देखना दिलचस्प होगा कि यह आदेश किस तरह से लागू होता है और इसका समाज पर क्या प्रभाव पड़ता है।
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