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प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट: असदुद्दीन ओवैसी पहुंचे सुप्रीम कोर्ट, धार्मिक स्थलों के सर्वे का किया विरोध

प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 को लेकर विवाद जारी है। इस मामले में एआईएमआईएम नेता असदुद्दीन ओवैसी भी सुप्रीम कोर्ट पहुंचे हैं। उन्होंने इस कानून को पूरी तरह लागू करने और धार्मिक स्थलों के सर्वे के विरोध में याचिका दायर की है। गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट ने उनकी याचिका को पहले से लंबित अन्य याचिकाओं के साथ जोड़ दिया। चीफ जस्टिस संजीव खन्ना की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा कि सभी याचिकाओं पर सुनवाई 17 फरवरी को की जाएगी।

ओवैसी की याचिका और मांगें
ओवैसी ने अपनी याचिका में 1991 के प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट को सख्ती से लागू करने की मांग की है। उन्होंने धार्मिक स्थलों की यथास्थिति बनाए रखने और धार्मिक स्थलों के सर्वे का विरोध किया है। ओवैसी की याचिका का मुख्य उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि धार्मिक स्थलों को लेकर कोई विवाद खड़ा न हो और सांप्रदायिक सौहार्द्र बना रहे।

सुप्रीम कोर्ट का अंतरिम आदेश
12 दिसंबर को सुप्रीम कोर्ट ने धार्मिक स्थलों को लेकर नए मुकदमे दर्ज करने पर रोक लगा दी थी। कोर्ट ने कहा था कि लंबित मामलों की सुनवाई जारी रह सकती है, लेकिन निचली अदालतें कोई अंतिम या प्रभावी आदेश नहीं दे सकतीं। साथ ही, धार्मिक स्थलों के सर्वे के आदेश पर भी रोक लगा दी गई थी।

केंद्र सरकार और याचिकाकर्ताओं को नोटिस
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से चार सप्ताह में जवाब दाखिल करने को कहा था। कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं को भी चार सप्ताह के भीतर अपना जवाब दाखिल करने का समय दिया। कोर्ट ने इस बात पर नाराजगी जताई कि केंद्र सरकार ने चार साल से लंबित इस मामले पर अब तक कोई जवाब दाखिल नहीं किया है।

क्या है प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट 1991?
1991 के इस कानून के अनुसार, देश के सभी धार्मिक स्थलों की जो स्थिति 15 अगस्त 1947 को थी, उसे बदला नहीं जा सकता। इस एक्ट का उद्देश्य सांप्रदायिक सौहार्द्र बनाए रखना और धार्मिक विवादों को खत्म करना है। हालांकि, इस कानून को चुनौती देने के लिए कई याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में दायर की गई हैं। इन याचिकाओं में दावा किया गया है कि यह कानून हिंदू, जैन, सिख और बौद्ध समुदायों को अपने अधिकार मांगने से रोकता है, जो उनके संवैधानिक अधिकारों का हनन है।

एक्ट के समर्थन में दायर याचिकाएं
प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट के समर्थन में भी कई याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की गई हैं। सुन्नी मुस्लिम उलेमा संगठन जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने 2020 में याचिका दायर कर कहा था कि अयोध्या विवाद को छोड़कर बाकी सभी मामलों में इस एक्ट का पालन होना चाहिए।

ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड, कांग्रेस प्रवक्ता आलोक शर्मा, आरजेडी सांसद मनोज झा, एनसीपी नेता जितेंद्र आव्हाड और सीपीएम नेता प्रकाश करात समेत कई संगठनों और व्यक्तियों ने भी याचिकाएं दायर कर सुप्रीम कोर्ट से मांग की है कि एक्ट को चुनौती देने वाली सभी याचिकाओं को खारिज किया जाए।

धर्मनिरपेक्ष ढांचे की सुरक्षा का दावा
एक्ट के समर्थकों का कहना है कि यह कानून भारत के धर्मनिरपेक्ष ढांचे को सुरक्षित रखने के लिए महत्वपूर्ण है। उन्होंने तर्क दिया है कि इस कानून का पालन सांप्रदायिक सौहार्द्र को बनाए रखने के लिए अनिवार्य है और इसे कमजोर करने के किसी भी प्रयास को खारिज कर देना चाहिए।

निष्कर्ष
प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 को लेकर सुप्रीम कोर्ट में चल रही सुनवाई ने एक बार फिर धार्मिक और संवैधानिक मुद्दों पर चर्चा को जन्म दिया है। असदुद्दीन ओवैसी और अन्य याचिकाकर्ताओं की मांगों के बीच, यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि सुप्रीम कोर्ट इस विवादित मामले में क्या फैसला सुनाती है।

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