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लखनऊ में अयातुल्ला खामनेई का पोस्टर लगाने पर बवाल: धार्मिक भावनाएं या राजनीतिक संदेश?

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्ला अली खामनेई का पोस्टर लगाए जाने को लेकर सियासी और धार्मिक विवाद खड़ा हो गया है। यह पोस्टर शिया धर्मगुरु मौलाना यासूब अब्बास के आवास अवध प्वाइंट पर लगाया गया है, जिसे लेकर हिंदू संगठनों और मुस्लिम नेताओं के बीच तीखी प्रतिक्रियाएं देखने को मिल रही हैं।

मौलाना यासूब अब्बास ने दी सफाई
मौलाना यासूब अब्बास ने पोस्टर लगाने को लेकर स्पष्ट किया कि यह कोई राजनीतिक स्टैंड नहीं है। उन्होंने कहा,

“अयातुल्ला खामनेई हमारे धर्मगुरु हैं, इसलिए हमने उनका पोस्टर लगाया है। इसका ईरान-इजराइल युद्ध या किसी राजनीतिक मसले से कोई संबंध नहीं है।”

हिंदू संगठनों की आपत्ति
हालांकि, इस पोस्टर को लेकर हिंदू संगठनों ने कड़ी आपत्ति जताई है। हिंदूवादी नेता पवन सिन्हा ने इसे “निंदनीय” बताते हुए सवाल किया,

“जब ऑपरेशन सिंदूर हुआ और भारत की फौजें लड़ रही थीं, तब क्या इस तरह के बैनर लगाए गए थे? जब भारत सरकार ने ऐसा नहीं किया, तो यह लोग कौन हैं जो ऐसे बैनर लगा रहे हैं?”
उन्होंने मांग की कि ऐसे पोस्टर तुरंत हटाए जाने चाहिए।

मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड का समर्थन
वहीं मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के प्रदेश अध्यक्ष हाफिज नूर अहमद अज़हरी ने इस कदम का समर्थन करते हुए कहा,

“इस पर किसी को आपत्ति नहीं होनी चाहिए। भारत और ईरान के बीच पुरानी और गहरी दोस्ती रही है। ईरान ने अतीत में भारत की कई बार मदद की है।”
उन्होंने यह भी कहा कि,
“शिया समुदाय द्वारा अपने धर्मगुरु की तस्वीर लगाना धार्मिक स्वतंत्रता का हिस्सा है और इस पर कोई सवाल नहीं उठना चाहिए।”

क्या है असली मुद्दा?
इस विवाद की जड़ में धार्मिक स्वतंत्रता और राजनीतिक संवेदनशीलता का टकराव दिखाई देता है। जहां एक ओर शिया समुदाय इसे आस्था का विषय बता रहा है, वहीं कुछ हिंदू संगठन इसे राजनीतिक प्रतीकवाद के रूप में देख रहे हैं, खासकर ईरान-इजराइल संघर्ष के संदर्भ में।

निष्कर्ष
लखनऊ में अयातुल्ला खामनेई के पोस्टर को लेकर उठे इस विवाद ने यह स्पष्ट कर दिया है कि धार्मिक प्रतीकों का सार्वजनिक प्रदर्शन भारत में राजनीतिक बहस का विषय बन सकता है। यह मामला एक बार फिर देश में धर्मनिरपेक्षता और धार्मिक स्वतंत्रता की सीमाओं को परिभाषित करने की चुनौती पेश कर रहा है। आने वाले दिनों में देखना होगा कि सरकार और प्रशासन इस मुद्दे पर क्या रुख अपनाते हैं।

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