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काबुल में आत्मघाती हमला तालिबान सरकार के मंत्री खलील हक्कानी की मौत

अफगानिस्तान की राजधानी काबुल में बुधवार (11 दिसंबर) को हुए आत्मघाती हमले ने तालिबान सरकार को गहरा झटका दिया है। इस हमले में तालिबान सरकार के शरणार्थी मंत्री खलील उर-रहमान हक्कानी और दो अन्य लोगों की मौत हो गई। हमला मंत्रालय के अंदर हुआ, जो तालिबान के लिए एक बड़ी सुरक्षा चूक मानी जा रही है। खलील हक्कानी तालिबान सरकार के गृहमंत्री सिराजुद्दीन हक्कानी के चाचा थे। सिराजुद्दीन को तालिबान का सबसे प्रभावशाली नेता और संगठन की रीढ़ माना जाता है।

पहली बार निशाने पर बड़ा नेता
तालिबान ने तीन साल पहले काबुल की सत्ता पर कब्जा किया था। यह पहली बार है जब उनके किसी बड़े नेता को इस तरह निशाना बनाया गया है। हालांकि, अब तक किसी संगठन ने इस हमले की जिम्मेदारी नहीं ली है। तालिबान के प्रवक्ता जबीहुल्लाह मुजाहिद ने इस घटना पर शोक व्यक्त करते हुए कहा कि खलील हक्कानी एक महान योद्धा थे जिन्होंने अपना जीवन इस्लाम की रक्षा के लिए समर्पित किया।

विशेषज्ञों का मानना है कि यह हमला तालिबान सरकार के खिलाफ बढ़ते असंतोष और विरोध को दर्शाता है। यह घटना तालिबान की सुरक्षा व्यवस्था पर भी सवाल खड़े करती है।

पाकिस्तान का विरोध और प्रतिक्रिया
इस हमले की कड़ी निंदा करते हुए पाकिस्तान के विदेश मंत्री इशाक डार ने इसे आतंकवादी घटना करार दिया। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान आतंकवाद के हर रूप का विरोध करता है और काबुल के साथ संपर्क में है। हालांकि, रिपोर्ट्स के मुताबिक, खलील हक्कानी पाकिस्तान से नाराज थे। विशेषज्ञों का मानना है कि यह नाराजगी भी हमले की वजह हो सकती है।

इस्लामिक स्टेट और तालिबान की दुश्मनी
तालिबान का सबसे बड़ा विरोधी इस्लामिक स्टेट (IS) से जुड़ा आतंकी संगठन इसे लगातार निशाना बना रहा है। हाल के आत्मघाती हमलों में भी इस संगठन का हाथ होने की आशंका जताई जा रही है। सितंबर में काबुल में इसी संगठन ने एक बम धमाके में छह लोगों की जान ली थी और कई अन्य घायल हुए थे।

इस्लामिक स्टेट न केवल तालिबान के नेताओं को निशाना बना रहा है बल्कि अफगानिस्तान के शिया मुस्लिम अल्पसंख्यकों पर भी हमला कर रहा है। यह दुश्मनी तालिबान सरकार के लिए बड़ी चुनौती बन गई है।

महिलाओं के अधिकार और विवादास्पद बयान
खलील हक्कानी की मौत के पीछे हाल ही में महिलाओं और लड़कियों के अधिकारों को लेकर दिए गए विवादास्पद बयानों की भी चर्चा हो रही है। क्राइसिस ग्रुप के साउथ एशिया प्रोग्राम के विश्लेषक इब्राहीम बहिस का मानना है कि गृहमंत्री सिराजुद्दीन हक्कानी ने इन बयानों की आलोचना की थी। हालांकि, यह घटना तालिबान में गृहयुद्ध जैसे हालात नहीं दर्शाती, लेकिन सत्ता पर पकड़ बनाए रखने की लड़ाई जरूर तेज हो गई है।

तालिबान के लिए बढ़ती चुनौतियां
खलील हक्कानी की हत्या से तालिबान सरकार के भीतर असंतोष और बाहरी खतरों की स्थिति और गंभीर हो गई है। यह घटना न केवल तालिबान की सुरक्षा व्यवस्था की कमजोरी को उजागर करती है बल्कि इसके भविष्य पर भी सवाल खड़े करती है।

निष्कर्ष
काबुल में हुआ यह आत्मघाती हमला तालिबान सरकार के लिए एक गंभीर चेतावनी है। खलील हक्कानी जैसे प्रमुख नेता की हत्या से संगठन के भीतर और बाहर दोनों स्तर पर उथल-पुथल मची हुई है। इस घटना से यह स्पष्ट होता है कि तालिबान सरकार के सामने सुरक्षा और सत्ता को बनाए रखने की चुनौतियां बढ़ती जा रही हैं।

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