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इस बार पड़ सकती है रिकॉर्ड तोड़ सर्दी, एएमयू के प्रोफेसर का दावा – ला-नीना का असर करेगा उत्तर भारत में ठंड का प्रकोप

इस साल ज्यादा गर्मी होने के बावजूद, आने वाले महीनों में कड़ाके की सर्दी पड़ने का अनुमान लगाया जा रहा है। अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (एएमयू) के भूगोल विभाग की एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. सलेहा जमाल का कहना है कि इस बार सर्दी पिछले 25 वर्षों का रिकॉर्ड तोड़ सकती है। इसके साथ ही, उन्होंने मौसम में कई तरह के बदलाव और इसकी वजह से होने वाले प्रभावों के बारे में भी जानकारी दी है।

25 साल का सर्दी का रिकॉर्ड टूटने का अनुमान
डॉ. सलेहा जमाल ने बताया कि प्रशांत महासागर में ‘ला-नीना’ के असर के चलते इस बार उत्तर भारत में तापमान में भारी गिरावट हो सकती है। उनके मुताबिक, इस साल ज्यादा गर्मी पड़ने के बाद जल्द ही हाड़ कंपाने वाली ठंड का दौर शुरू होगा। एएमयू के भूगर्भ वैज्ञानिकों का मानना है कि तापमान में कमी और हवा के उच्च दबाव के कारण ला-नीना का असर पूरे उत्तर भारत पर दिखेगा और इसकी वजह से इस बार कड़ाके की ठंड पड़ेगी। इसके चलते पिछले 25 वर्षों का रिकॉर्ड भी टूट सकता है।

ला-नीना का असर और मौसम में बदलाव
प्रोफेसर सलेहा जमाल का मानना है कि इस बार मौसम में बड़े पैमाने पर बदलाव देखने को मिलेंगे। उन्होंने कहा कि प्रशांत महासागर में ला-नीना की स्थिति से उत्तरी गोलार्ध में ठंड का प्रकोप अधिक होगा। दरअसल, ला-नीना और अल-नीनो दो विपरीत मौसमी घटनाएं हैं, जो पूरी दुनिया के मौसम, जंगल की आग और अर्थव्यवस्था पर गहरा असर डालती हैं। आमतौर पर, यह घटनाएं 9 से 12 महीने तक चलती हैं और इनका प्रभाव कई बार लंबे समय तक रहता है। इन घटनाओं का निश्चित अंतराल नहीं होता, लेकिन हर 2 से 7 साल में ये दोबारा देखने को मिलती हैं।

रबी और खरीफ की फसलों पर पड़ेगा असर
एएमयू प्रोफेसर ने बताया कि इस मौसम का सबसे अधिक असर रबी और खरीफ फसलों पर पड़ सकता है। मार्च और अप्रैल में गर्म हवाएं और बारिश के कारण किसानों को परेशानी उठानी पड़ सकती है। डॉ. जमाल के अनुसार, प्रशांत महासागर से बहने वाली हवाएं भूमध्य रेखा के समानांतर पश्चिम की ओर बहती हैं और दक्षिण अमेरिका से एशिया की ओर गर्म पानी को लेकर आती हैं। ऐसे में भारत के मानसून पर भी प्रशांत महासागर की जलवायु का प्रभाव पड़ता है, जो भारतीय मौसम को सीधे तौर पर प्रभावित करता है।

भारत के मौसम पर वैश्विक प्रभाव का असर
डॉ. जमाल का मानना है कि दुनिया के किसी भी हिस्से में होने वाले मौसम में बदलाव का अप्रत्यक्ष प्रभाव दूसरी जगहों पर भी देखने को मिलता है। भारत का मानसून भी मुख्य रूप से प्रशांत महासागर की स्थिति पर निर्भर होता है। इस बार ला-नीना के कारण भारत में केवल ठंड ही नहीं, बल्कि सूखा और अनियमित बारिश जैसी घटनाएं भी हो सकती हैं। इससे भारत की कृषि और अर्थव्यवस्था पर गहरा प्रभाव पड़ने की आशंका है।

एएमयू के वैज्ञानिकों का कहना है कि इस साल की सर्दी में बदलावों की संभावना बहुत अधिक है। जैसे-जैसे ठंड का मौसम नजदीक आएगा, इसकी तीव्रता बढ़ने की पूरी संभावना है। इसका असर न केवल उत्तर भारत के लोगों पर पड़ेगा, बल्कि देश के अन्य हिस्सों में भी सर्दी का प्रभाव असामान्य तरीके से बढ़ सकता है।

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