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महाराष्ट्र की राजनीति में उठापटक: एकनाथ शिंदे को बीजेपी में विलय का ऑफर?

महाराष्ट्र की राजनीति में पिछले साल नई सरकार बनने के बाद से ही लगातार खींचतान जारी है। मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस और डिप्टी सीएम एकनाथ शिंदे के बीच मतभेदों की खबरें लगातार सुर्खियों में बनी हुई हैं। कभी फडणवीस शिंदे गुट के विधायकों की सुरक्षा कम कर देते हैं तो कभी शिंदे सरकार की महत्वपूर्ण बैठकों से गायब हो जाते हैं। हाल ही में सीएम फडणवीस ने शिंदे सरकार के कई फैसलों को भी पलट दिया, जिससे यह साफ हो गया है कि महाराष्ट्र में बीजेपी और शिंदे गुट की शिवसेना के बीच सब कुछ ठीक नहीं चल रहा।

अमित शाह ने दिया शिवसेना विलय का प्रस्ताव?

इस राजनीतिक उठापटक के बीच शिवसेना (उद्धव गुट) के मुखपत्र ‘सामना’ में एक बड़ा दावा किया गया है। ‘सामना’ के मुताबिक, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने एकनाथ शिंदे को शिवसेना का बीजेपी में विलय करने का प्रस्ताव दिया है। यह ऑफर शिंदे द्वारा बार-बार मुख्यमंत्री पद की मांग करने के कारण दिया गया है।

पुणे की होटल में सुबह 4 बजे हुई मीटिंग!

‘सामना’ के मुताबिक, पुणे के कोरेगांव स्थित वेस्टर्न होटल में सुबह 4 बजे एकनाथ शिंदे और अमित शाह के बीच एक गुप्त बैठक हुई। इस बैठक में शिंदे ने फडणवीस की शिकायतें करते हुए अपना मुख्यमंत्री पद वापस मांगा। इस पर अमित शाह ने साफ कहा कि बीजेपी के पास 125 से अधिक विधायक हैं, ऐसे में बाहर की पार्टी का कोई व्यक्ति मुख्यमंत्री नहीं बन सकता। अगर शिंदे को मुख्यमंत्री पद चाहिए तो उन्हें अपनी पार्टी का बीजेपी में विलय करना होगा।

संजय राउत ने की पुष्टि

शिवसेना (उद्धव गुट) के नेता संजय राउत ने इस बैठक की पुष्टि की है। उन्होंने कहा, “सुबह 4 बजे एकनाथ शिंदे अपने हाईकमान यानी अमित शाह से पुणे में मिले। वहां उन्होंने फडणवीस द्वारा अपने गुट के विधायकों को परेशान किए जाने की शिकायत की। उन्होंने अमित शाह को याद दिलाया कि उनसे चुनाव के बाद मुख्यमंत्री बनाने का वादा किया गया था। इस पर अमित शाह ने जवाब दिया कि बीजेपी के पास पूर्ण बहुमत है और अगर शिंदे को मुख्यमंत्री बनना है तो उन्हें अपनी पार्टी का विलय बीजेपी में करना होगा।”

महाराष्ट्र में आगे क्या?

इस घटनाक्रम से महाराष्ट्र की राजनीति में नया मोड़ आ सकता है। अगर शिंदे अपनी पार्टी का बीजेपी में विलय करते हैं तो महाराष्ट्र की सत्ता संतुलन में बड़ा बदलाव देखने को मिलेगा। दूसरी ओर, अगर वह ऐसा नहीं करते हैं तो उनके लिए राजनीति में बने रहना और मुश्किल हो सकता है। यह देखना दिलचस्प होगा कि आने वाले दिनों में महाराष्ट्र की राजनीति किस दिशा में आगे बढ़ती है।

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